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नारी मन




गीत        
          विषय नारी मन 
     ( जग का आधार नारी )

नारी नर की खान सदा से ,
 जानत सकल जहांन है ।
नारी मन सागर सा गहरा ,
मापत सोइ नादान है ।

 मन नारी मक्खन सा कोमल ,
 तन फौलादी होता है ।
निर्णय भी क्षण भर के होते ,
क्षण में हंसता रोता है ।

कभी किसी का बुरा ना सोचे,
 ना कोई दुश्मन होता। 
 पालन पोषण जग का करती ,
 नहीं देखती है रोता ।

पति से लड़ती पति हित देखो ,
 सदा उसे समझाता है ।
ना समझे पति देव अगर तो ,
मन मार वो मुस्काती है ।

नारी मन संकल्प किया तो ,
नारायण कुटिया धरती ।
अनसुइया नारी को देखो ,
तीन देव बालक करती ।

कह "अनजान" न समझो नारी ,
जग की वही आधार है ।
आलय प्रलय गोद में बसता ,
 उनसे ही ये संसार है ।

स्वरचित व मौलिक 
डॉक्टर रामभरोसा पटेल "अनजान" 
शिक्षक व साहित्यकार 
बजरंग नगर कॉलोनी 
छतरपुर मध्य प्रदेश।

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9 Comments

Shnaya

23-Feb-2024 12:46 AM

Nice

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Gunjan Kamal

22-Feb-2024 11:43 PM

👌🏻👏🏻

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